Tuesday, March 30, 2010

jo beet gaya!

रात बीतते बीतते बीती
नींद आते आते रूठ गयी
ख्वाब बिखरे बिखरे धुंद में मिल गए
राह चलते चलते थक गयी

धुआं धुआं सा समा, नज़'रिया बदल गया

जाने अनजाने पहचान बन गए
जवानी उम्र के साथ यूँ निकली
के उसके पीछे हम ज़िन्दगी ढूँदते रह गए

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